आपसी सहमति से तलाक़ जैसे की नाम से ही पता चलता है इसका मतलब है कि जब पति और पत्नी दोनो आपस में यह फैसला कर ले कि वह अब एक साथ नही रह सकते है और अब उनके लिए सबसे अच्छा समाधान या उपाय तलाक ही है पिछली पोस्ट जमानत के आधार जरूर पढ़े
वह एक दूसरे के खिलाफ बिना किसी तरह का आरोप लगाए सम्मान जनक तरीके से कोर्ट में इकट्ठा या संयुक्त रूप से तलाक़ के लिए आवेदन दे तो यह आपसी सहमति तलाक़ के नाम से जाना जाएगा है।
आपसी सहमति से तलाक़ कैसे जानिए

यह भारत मे तलाक का सबसे अच्छा और सबसे तेज रूप है मैं आज इस पोस्ट पर आपको बताने वाला हूं कि आपसी सहमति से तलाक कैसे ली जा सकती है
आपसी सहमति से तलाक़ लेने के लिए क्या क्या शर्ते है आइए जानते है
आपसी सहमति से तलाक़ लेने के लिए तीन शर्तो का पूरा किया जाना जरूरी हैं
1. दोनो पार्टी कम से कम एक साल से अलग रह रहे हो एक साल में उन दोनो के बीच कोई वैवाहिक संबंध न बना हो
2. दोनो पक्ष किसी भी कारण से साथ रहने में विफल रहे है दूसरे शब्दों मे अगर कहूं कोई भी सुलह या कोई समायोजन उन दोनो पक्षों के बीच मे अब संभव नही रहा है
3. दोनो पक्षों ने स्वतंत्र रूप से शादी खत्म करने के समझौते के लिए सहमति दे दी हो

यहां में आपको एक चीज बता दूं कि दोनो पक्षों को यह आजादी है कि वह 6 माह के अंदर अंदर उनमें से कोई भी एक अपनी सहमति को वापस ले सकते है
चलिए अब हम बात करते हैं आपसी सहमति से तलाक लेने का प्रोसेस क्या है?

आपसी सहमति से तलाक़ लेने के लिए दो बार अदालत मे पेश होना पड़ता है
सबसे पहले एक संयुक्त रूप से दोनो पक्षों द्वारा फैमिली कोर्ट मे एक हस्ताक्षर याचिका दायर की जाती है आपसी सहमति से तलाक की याचिका दोनो भागीदारों द्वारा एक संयुक्त बयान के रूप में शामिल होना चाहिए कि उनके मतभेद के कारण वे अब एक साथ नही रह सकते है और तलाक दे दिया जाना चाहिए
यह बयान संपत्ति विभाजित करने के लिए और बच्चों की कस्टडी आदि के लिए एक समझौता होता है
दूसरी बात यह है कि दोनो पार्टियों का पहले प्रस्ताव बयान दर्ज किया जाता है और फिर बयान पर कोर्ट के सामने हस्ताक्षर किए जाते है

तीसरी बात यह कि 6 महीने की अवधि का समय उन दोनो को सुलह के लिए दिया जाता है कोर्ट ने उनके मन को बदलने के लिए उनको एक मौका और देता है
चौथी बात पहले प्रस्ताव के बाद 6 महीने बीतने के बाद भी अगर दोनो पार्टी एक साथ रहने के लिए सहमत नही है तो पार्टीयो को अंतिम सुनवाई के लिए दूसरे प्रस्ताव के लिए हाज़िर होना पड़ सकता है
अगर दूसरा प्रस्ताव 18 महीने की अवधि के भीतर नहीं किया जाता तो अदालत आपसी सहमति से तलाक की डिग्री पारित करने के लिए बाध्य नहीं है
कानून से स्पष्ट है कि पार्टियों में से एक भी डिग्री पारित होने से पहले किसी भी समय अपनी सहमति को वापस ले सकती है

आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि दोनो पक्षों की सहमति होनी चाहिए दूसरे शब्दो में जब तक शादी खत्म करने के लिए पहली पार्टी पति और दूसरी पार्टी पत्नी के बीच तलाक़ की सहमति नहीं है पूरी और जब तक अदालत को भी लगता है कि पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है
आपसी सहमति से तलाक के लिए डिग्री प्रदान नही की जा सकती हैं चलिए अब हम बात करते है
आपसी सहमति से तलाक के क्या क्या फायदे है
आपसी सहमति से तलाक लेने में दोनो पार्टियों के समय, धन और ऊर्जा की बचत होती है गैर जरूरी झगड़ो के लिए कोई गुंजाइश नहीं होती और सबसे महत्वपूर्ण बात सार्वजनिक रूप से बचा जा सकता है
तलाक तलाक के आवेदन की संख्या को बढ़ता देख और जल्दी तलाक के लिए बढ़ रही मांग को देखकर आपसी सहमति से तलाक लेना सबसे अच्छा विकल्प है
हिंदू जोड़े के बीच आपसी सहमति से तलाक हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 (B) के तहत दी जाती है धारा 13 (B) कहती है तलाक के लिए याचिका डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दोनो पक्षों द्वारा दायर की जा सकती है और उसके लिए तीन शर्ते है
पहली शर्त की दोनो एक साल या इससे अधिक अवधि के लिए अलग रह रहे हो
दूसरी शर्त अब दोनो एक साथ रहने के लिए सक्षम नहीं है
तीसरी शर्त वह अब आपसी सहमति से इस शादी को खत्म करना चाहते है

तो इन तीन शर्तो के पाए जाने के आधार पर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मे आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की जा सकती है दूसरी बात यह है कि दोनो दलों के प्रस्ताव पर 6 महीने के बाद और 18 महीने से पहले यदि याचिका वापस नही ली जाती और दोनो के दोनों आपसी सहमति से साथ रहने के लिए भी तैयार नहीं है तो अदालत दोनो पक्षों की बात सुनने के बाद उनके बीच तलाक की डिग्री पारित कर देगी और शादी को खत्म कर देगी
तो दोस्तो आज के इस पोस्ट पर आपने सीखा कि किस तरह से आपसी सहमति से तलाक़ लिया जाता है और आपसी सहमति से तलाक़ लेने के लिए क्या क्या शर्ते है अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो अपने दोस्तो को शेयर करे और इससे जुड़े कोई सवाल आपको पूछना हो तो नीचे आप कॉमेंट करके पूछ सकते है।
